Rupaji rabari history :
आज हम चर्चा करेंगे एक आम व्यक्ती की जिसने अपने कारनामों से इतिहास मे नाम दर्ज करवा दिया । इनका नाम रूपजी रबारी है। आपका जन्म सांचौर के चौरा गाँव मे हुआ था। आप बचपन से ही अपने कारनामों की वज़ह से सभी परिवारजनों के प्रिय थे। आप हमेशा से ही सामंतो की नीतियों के घोर विरोधी रहे। इस समय राजपूत सामंतो से आम जन का हमेशा संघर्ष चलता रहता था। स्थानीय लोग उन्हें प्यार से जादूगर भी कहते थे। राजपूतों की सामंती नीतियों के घोर विरोधी होने की वजह से राजपूत के साथ रोजाना के संघर्ष से मुक्त होने के लिए अपने माल मवेशियों के साथ बड़े भाई समरथा जी के साथ पाल गांव को अपना आश्रय स्थल बनाया। माल मवेशियों की तादाद की वजह से पाल की पहाड़ियों के उत्तरी छोर पर वाडाल गांव में रूपा जी परिवार सहित बस गए। समरथा जी पहाड़ी के दक्षिणी छोर पाल गांव में बसे। उस दौर में सामंत की कानून व्यवस्था चलती थी। लोगों के जीवन एक दास की भांति कटते थे। सभी लोग गुलामी का जीवन जीते थे, पर Rupaji rabari ठहरे स्वाभिमानी, उन्होंने सामंतों के अत्याचारों का कङा विरोध किया। उस सामंती दौर में व्यवस्था का विरोध करने वाले इक्के दुक्के लोग ही हुआ करते थे और उनमें से एक बड़ा नाम रूपजी रबारी का था।
Rupaji rabari history बहादुरी से सामंतो मे खौफ
जो भी विरोध करते उन्हें सामंत मौत के घाट उतार दिया करते थे परंतु रूप जी के सामने किसी की दाल नहीं गलती थी। उनकी बहादुरी व समझ से पूरा क्षेत्र कायल था। लोगों ने अपना नेतृत्व कर्ता रूप जी को मान लिया था। यह बात सामंतों को नागवार गुजरी । तात्कालिक जोधपुर दरबार के राजा ने जालौर के तमाम सामंतों को रूप जी के पीछे लगाया कि किसी भी छल कपट से रूपजी को ठिकाने लगाओ। पर देवी कृपा की वजह से बंदूक में गोलियों की बजाय पानी निकल आता था, तलवार से वार करने वाले का हाथ ऊपर हवा में ही लटक जाता था। यह सब रूप जी की जादू गिरी की वजह से हो पता था । लोग रूप जी में देवीय अंश देखा करते थे।
Rupaji rabari को अपने वश में करने के लिए सामंतों को कई पापड़ बेलने पड़े । एक बार एक नाई के भाई को हथियार बना कर रूप जी को वश में लेने का षड्यंत्र रचा गया । एक बार माल मवेशी लेकर चराने हेतु रूप जी स्वयं जसवंतपुरा की पहाड़ियों में चले गए। जहां बड़वज गांव में परिवार सहित ठहरे हुए थे। रात के समय नाई की मुखबरी पर उन्हें अकेला देखकर सामंतों के लोगों ने हमला बोल दिया । तभी जादू विद्या की विशेष सामग्री झोपड़ी में रह गई थी जिसे सामंतों ने छल कपट से आग के हवाले कर दिया था। उस घटना से रूप जी को गोलियां लग गई और उन्हें हमेशा के लिए दुनिया छोड़कर जाना पड़ा। उनकी शहादत अपने आप में एक मिसाल बन गई। सामंतों ने इसे अपनी सबसे बड़ी जीत बताया। उसके बाद आज तक उनके परिजनों ने सामंतों की चौखट पर कदम नहीं रखा। भले कितना ही त्याग करना पड़े लेकिन सामंतों की हुकूमत कभी स्वीकार नहीं की। सामंतों ने अपनी झूठी वाहवाई लूटने के लिए उनके जीवन पर सीडी ऑडियो व वीडियो बनाएं जो सभी कूट रचित थे, जिनका समय-समय पर विरोध भी हुआ लेकिन कानूनी संरक्षण की वजह से इन सीडी पर पूर्णतया पाबंदी नहीं लग पाई। रूप जी का परिवार रानीवाड़ा तहसील के वडाल व पाल गांव में रह रहा है। रूप जी के आदर्श आज भी उनके परिवार में जिंदा है आजीवन सामंतशाही को नकारने वाले रूप जी वास्तव में धन्य है। रूप जी की मृत्यु के बाद उनके विचार और संघर्ष की लौ और ज्यादा तेज हो गई। उनके परिजनों ने कभी सामंतों के सामने सिर नहीं झुकाया। समाज ने झूठी सीडी और वीडियो का पुरजोर विरोध किया तथा रूप जी को एक नायक के रूप में सम्मानित किया। उनकी शहादत ने नए जननायकों को जन्म दिया। लोगों में सामंतो का विरोध करने की एक लहर दौड़ पड़ी। रूपाजी रेबारी की गाथा इतिहास नहीं बल्कि समाज की चेतना का हिस्सा है जो आज भी युवाओं को अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देती है।