Rahul Gandhi’s mentality भारत को किस दिशा में ले जा रही

By Vidya Vikas Degree College

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Rahul Gandhi’s mentality : राहुल गांधी ने नॉट फाउंड सूटेबल (NFS) को नया मनुवाद कहा है। राहुल गांधी ने कल अपने एक बयान में सरकारी भर्तियों में एनएफएस की अवधारणा को जातिवादी सोच का प्रतीक बताया। उनके इस बयान के बाद भारत में जाति आधारित राजनीति और सामाजिक न्याय के मुद्दे को फिर से उभार दिया है। 27 मई 2025 को दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ(DUSU) के साथ बातचीत में राहुल ने आरोप लगाया कि एससी / एसटी और ओबीसी समुदायों के योग्य उम्मीदवारों को NFS के बहाने शिक्षा और नेतृत्व की भूमिकाओं से जानबूझकर वंचित किया जा रहा है। यह बयान उनके लंबे समय से चली आ रही जाति जनगणना और सामाजिक न्याय की वकालत का हिस्सा है जिसे उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा के माध्यम से जोर-जोर से उठाया था। 2009 में राहुल गांधी ने कहा था कि वह जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं करते लेकिन अब इसे अपनी राजनीति का केंद्र बना रहे हैं। जाहिर है यह यूं ही तो नहीं हुआ होगा। जानिए इसके पीछे राहुल गांधी की क्या मंशा है? और यह भारतीय राजनीति को किस दिशा में ले जा रहे हैं ? 

Rahul Gandhi’s mentality से क्यों मचा बवाल

राहुल गांधी ने अपने ऑफिशियल एक्स साइट पर लिखा कि नॉट फाउंड सूटेबल(NFS) अब नया मनुवाद है। एससी/ एसटी/ ओबीसी के योग्य उम्मीदवारों को जानबूझकर अयोग्य ठहराया जा रहा है ताकि वह शिक्षा और नेतृत्व से दूर रहे। बाबा साहब ने कहा था_ “शिक्षा बराबरी के लिए सबसे बड़ा हथियार है” लेकिन मोदी सरकार उस हथियार को कुंद करने में जुटी है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में 60% से ज्यादा प्रोफेसर और 30% से ज्यादा एसोसिएट प्रोफेसर के आरक्षित पदों को एनएफएस बताकर खाली रखा गया है। यह कोई अपवाद नहीं है _ आईआईटीज, सेंट्रल यूनिवर्सिटीज हर जगह यही साजिश चल रही है। एनएफएस संविधान पर हमला है। NFS सामाजिक न्याय से धोखा है यह सिर्फ शिक्षा और नौकरी ही नहीं अधिकार, सम्मान और हिस्सेदारी की लड़ाई है।

Rahul Gandhi's mentality

कांग्रेस नेता ने लिखा है मैंने DUSU के छात्रों से बात की. अब हम सब मिलकर बीजेपी व आरएसएस की हर आरक्षण विरोधी चाल को संविधान की ताकत से जवाब देंगे।

क्या है राहुल गांधी का नया एजेंडा

राहुल गांधी ने पिछले कुछ वर्षों में जाति जनगणना को अपनी राजनीतिक रणनीति का केंद्र बनाया हुआ है। उनकी भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने सामाजिक न्याय और दलित पिछड़े समुदायों के सशक्तिकरण को मुख्य मुद्दा बनाया। उनकी मांग है की जाति जनगणना में केवल जनसंख्या की गणना नहीं है बल्कि आर्थिक और संस्थागत असमानताओं को भी उजागर करती है ताकि नीति निर्माण में 90% आबादी को उचित प्रतिनिधित्व मिल सके। राहुल गांधी ने तेलंगाना में जाति जनगणना को मॉडल के रूप में पेश किया। जांहा यह दिखाया गया की 90% आबादी दलित/ आदिवासी /ओबीसी और अल्पसंख्यकों की है उन्होंने दावा किया कि राष्ट्रीय स्तर पर भी यही स्थिति होगी और ओबीसी 50% से अधिक होंगे । केंद्र सरकार ने 2025 में जाति जनगणना की घोषणा कर दी है जिसे राहुल गांधी ने अपनी दबाव की राजनीति की जीत बताया। इसे Rahul Gandhi’s mentality की जीत भी कह सकते हैं। लेकिन उन्होंने समय सीमा और पारदर्शिता की भी मांग की है। 24 अगस्त 2024 को प्रयागराज में संविधान सम्मान सम्मेलन में राहुल ने कहा कि जाति जनगणना नीति निर्माण की नींव होगी और 50% आरक्षण की सीमा को हटाने की जरूरत भी है।

NFS पर सवाल उठाना कितना सही :

राहुल गांधी को मेरिट को ऊंची जाति का नेरेटिव बताते रहे हैं उनका कहना है कि शिक्षा और नौकरशाही में प्रवेश प्रणाली दलित /ओबीसी और आदिवासियों के लिए सांस्कृतिक रूप से अनुपयुक्त है। दरअसल राहुल गांधी की यह पूरी अवधारणा ही मेरिट के खिलाफ है। पिछड़े शोषितों को आरक्षण से इनकार नहीं किया जा सकता पर यह भी नहीं कहा जा सकता की मेरिट की बात आरक्षण को खत्म करने के लिए की जा रही है। अमेरिका में मेरिट को महत्व देने के चलते ही काले लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में भारत जैसा आरक्षण नहीं मिला है हालांकि अमेरिका में काले लोगों के साथ जो भेदभाव होता रहा है वह कम खतरनाक नहीं है लेकिन यहां आरक्षण की बजाय एफर्मेटिव एक्शन की नीतियां लागू है जो समान अवसर सुनिश्चित करती है ताकि मेरिट का महत्व बना रहे । यही कारण है कि अमेरिका दुनिया में आज भी हर क्षेत्र में अपना दबदबा बनाए हुए हैं। राहुल गांधी बार-बार कहते हैं कि केंद्र सरकार के बजट तैयार करने वाले 90 शीर्ष नौकरशाहों में केवल तीन ओबीसी है। उन्होंने कॉर्परेट ,मीडिया और शिक्षा में ओबीसी और दलितों की कम भागीदारी पर सवाल उठाए। Rahul Gandhi’s mentality से दरअसल यह मांग बढ़ती ही जा रही है। कांग्रेस ने देश पर 50 साल से अधिक शासन किया प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में अब तक दलितों की भागीदारी नहीं बढ़ सकी । अगर आजादी के बाद दलितों और पिछड़ों के साथ बराबर का व्यवहार किया गया होता तो आज राहुल गांधी को यह कहने की नौबत ही नहीं आती। देश का बजट बनाने में अगर जाति के अनुपात में हिस्सेदारी की मांग होगी तो देश के लिए मुश्किल होना तय है क्योंकि कल को यह मांग हवाई जहाज उड़ाने में, दिल के मरीजों का ऑपरेशन करने में, फैक्ट्रियां लगाने में, कॉर्पोरेट कंपनी के सीईओ बनने में भी बढ़ जाएगी। जाहिर है यह देश या समाज के लिए किसी भी सूरत में सही नहीं होगा।

राहुल गांधी इस सोच को कहां तक ले जाएंगे :

राहुल गांधी का यह कदम कांग्रेस को दलित, ओबीसी और आदिवासी मतदाताओं के बीच फिर से प्रासंगिक बनाने की कोशिश है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 52 सिटें मिली और अमेठी जैसे गढ़ में राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा। NFS और जाति जनगणना जैसे मुद्दों को उठाकर वह इन समुदायों को लामबंद करने की कोशिश कर रहे हैं, जो देश की 90% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। NFS को नया मनुवाद कहकर राहुल ने शिक्षा और नौकरियों मे संस्थागत भेदभाव को राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बना दिया है। यह दलित और ओबीसी समुदायों में जागरूकता बढ़ा सकता है, लेकिन ठीक इसके विपरीत ऊंची जातियों के बीच प्रतिक्रिया भी पैदा कर सकता है। कांग्रेस का वोट बैंक अगड़ी जातियों में भी रहा है _ विशेष कर ब्राह्मण और बणिया वर्ग कांग्रेस को वोट देता आ रहा है। आज भी कांग्रेस को ब्राह्मण वोटर पर बहुत ही ज्यादा भरोसा है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में अमेठी और रायबरेली में मिले वोट केवल अल्पसंख्यकों और दलितों के नहीं है। इन दोनों जगह पर मिले बंपर वोट बताते हैं कि कांग्रेस को बड़ी जातियों ने भी अच्छा खासा समर्थन दिया है। कांग्रेस ने वादा किया है कि यदि वह सत्ता में आती है तो 50% आरक्षण की सीमा हटाने और निजी शिक्षण संस्थानों मे भी आरक्षण लागू करने हेतु प्रतिबद्ध रहेगी। जाहिर तौर पर उनका यह वादा जातिगत राजनीति को और ज्यादा मजबूत करेगा । जाति जनगणना के डेटा का उपयोग करके संसाधनों का पुनर् वितरण और नीति निर्माण में समानता लाने की उनकी योजना दीर्घकालिक सामाजिक परिवर्तन ला सकती है। पर समाज कितना बुरी तरह टूटेगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। Rahul Gandhi’s mentality से जातिगत संगठन बनेंगे और दबाव की राजनीति देश में उग्र हो जाएगी जिससे निपटना किसी भी सरकार के लिए बस की बात नहीं रहेगी।

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